रविवार, 6 अप्रैल 2025

एक तरफा ही सही उम्मीद थी

 दूर हटाओ चेहरा मेरी आँखों से अपना 

पहले अपनापन दिखाती हो फिर रुलाती हो 

क्या कर लिया मेरे मन की बातें जानकर 

कौनसा हल निकाल दिया बातें सुनकर 

सब राज दिल में दबाये ख़ुशी थी 

एक तरफा ही सही उम्मीद थी 

आज एक उम्मीद छिन ली 

जीने की खुशी छिन ली 

तन्हा अकेला था पहले ही 

अब कौनसी तूने महफ़िल सजा दी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें