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गुरुवार, 15 मई 2025

मुझे रजपूती पोशाक बहुत पसंद है

 मुझे रजपूती पोशाक बहुत पसंद है 

क्या पता उसे पसंद है भी की नहीं 

नहीं पसंद है तो क्या, मेरे लिए तो पहनेगी

रोज नहीं तो क्या, कभी - कभी तो पहनेगी

अगर किया मना उसने तो मैं भी कह दूँगा 

जाओ हम तुम से बात नहीं करते 

क्या तुम हम से प्यार नहीं करते 

मान जाओ लाडो रानी

साड़ी एक नहीं दो चार दिला दूँगा 

गोलगप्पे चाऊमीन पीजा खिला दूँगा 

तुम कहो वहां घुमा दूँगा 

Reel Insta पर बना दूँगा 

Status अपने whatsapp लगा दूँगा 

अब मानो बात हमारी 

अपना होश संभालो प्यारी 

रोज नहीं तो क्या, कभी - कभी तो पहनोगी

नहीं पसंद है तो क्या, मेरे लिए तो पहनोगी

फिर वही बात दोहराता हूँ 

उसे कहने से घबराता हूँ 

क्या पता उसे पसंद है भी की नहीं 

मुझे रजपूती पोशाक बहुत पसंद है 


रविवार, 6 अप्रैल 2025

एक तरफा ही सही उम्मीद थी

 दूर हटाओ चेहरा मेरी आँखों से अपना 

पहले अपनापन दिखाती हो फिर रुलाती हो 

क्या कर लिया मेरे मन की बातें जानकर 

कौनसा हल निकाल दिया बातें सुनकर 

सब राज दिल में दबाये ख़ुशी थी 

एक तरफा ही सही उम्मीद थी 

आज एक उम्मीद छिन ली 

जीने की खुशी छिन ली 

तन्हा अकेला था पहले ही 

अब कौनसी तूने महफ़िल सजा दी 

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

संभल जा अब भी हुई देर नहीं


हर एक जरे के बाद महसूस होती है अकेलेपन की
हर उस वक्त में खलती है,  कमी अपनेपन की
एक रोज तेरी यादें संजोया करते
अब हर रोज तेरी यादें भुलाया करेंगे
मुश्किल तो होगा बीना रहना तेरे
अब से इस दिल को बहलाया करेंगे
जीना दुश्वार तो होगा बीना तेरी यादों के
अब इसे संभलना होगा बीना किसी बहानो के
इतना भी नहीं अदृश्य चेहरा तेरा
समझ ना सके जो यह मन मेरा
संभल जा अब भी हुई देर नहीं
रोयेगा उस दिन ठोकर खाकर कही

तेरे पैरों की आहट


सुन कर तेरे पैरों की आहट चेहरे पर रंगत आ जाती है
कुछ देर बाद जब तुँ ना दिखे तो फिर से मायूसी छा जाती है
क्यों यह उदासियाँ चेहरे से जाती नहीं
क्यों अब बगैर तेरे रहा जाता नहीं
जब जब रहना चाहता हूँ बगैर तेरे
तब तब होश उड़ जाते हैं मेर

जाने कहाँ छुपी है तूंँ



जाने कहाँ छुपी है तूँ
तेरी हर एक याद साँसो में बसाये रखी है
तेरी सुरत अब तक दिल में छुपाये रखी है
जाने कहाँ छुपी है तूँ

जाने कहाँ छुपी है तूँ
तुम्हें पाने की हर वक्त ललक रहती है
अब तो हर किसी में तूँ ही दिखती है
जाने कहाँ छुपी है तूँ

जाने कहाँ छुपी है तूँ
मेरी चाहत को यूँ नजर अंदाज ना करना
एक बार आकर मुझे अपनी बाँहों में भर लेना
जाने कहाँ छुपी है तूँ

जाने कहाँ छुपी है तूँ
मेरी महोबत को तूँ ठुकरा ना देना
साथ बिताये लम्हे भुला ना देना
जाने कहाँ छुपी है तूंँ

बुधवार, 14 नवंबर 2018

निगाहें बहुत है

खाली हूँ पर काम बहुत हैं,
करता कुछ नहीं क्योंकि बहाने बहुत हैं।

मंजिल है एक मगर इच्छाएँ बहुत हैं,
राह तय करनी है तुम तक मगर दूरी बहुत है।

पहल करनी है पर झिझक बहुत है,
बात करनी है मगर शर्माते बहुत है।

भूल जाऊँ तो कैसे ? यादास्त बहुत है,
इजहार करूँ तो कैसे ? निगाहें बहुत है। 

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

जाने कहाँ छुपी है तूँ



जाने कहाँ छुपी है तूँ
मैं तुम्हें ढूँढता हूँ हर गली
जाने तूँ मुझे अब तक क्यों ना मिली
तेरी हर एक याद साँसों में बसाये रखी है
तेरी सुरत को अब तक दिल में छुपाये रखी है
तुम्हें पाने की हर पल ललक रहती है
अब तो हर किसी में तूँ ही दिखती है
मेरी महोबत को तूँ ठुकरा ना देना
साथ बिताये लम्हे भुला ना देना
मेरी चाहत को यूँ नजर अन्दाज ना करना
एक बार आकर मुझे अपनी बाहो में भर लेना
मेरी महोबत को तूँ ठुकरा ना देना
साथ बिताये लम्हे भुला ना देना
जाने कहाँ छुपी है तूँ

क्यों झीक - झीक करता हूँ


क्यों झीक - झीक करता हूँ
जबकि कोई बात मेरी सुनता ही नहीं
क्यों मैं किसी को रोकता - टोकता हूँ
जबकि कोई बात मेरी मानता ही नहीं
बन्द कर अब यह झीक - झीक करना
बन्द कर अब किसी को रोकना - टोकना
हर कोई अपने आप में मस्त है
तूँ क्यों इनके लिए परस्त है
अब तुझे कोई अपना मानता नहीं
इसी लिए कोई तेरी मानता नहीं
बन्द कर अब इनके लिए रोना - धोना
इनके लिए अपनी जिन्दगी बना ली सुना कोना
अब तूँ अकेला ही बना अपनी जिन्दगी मजेदार हमेशा
छोड़ इन सब को ना कर किसी पर भरोसा

काश मेरी जिन्दगी होती किसी सॉफ्टवेयर की तरह





काश मेरी जिन्दगी होती किसी सॉफ्टवेयर की तरह
रिस्टोर कर लेता इसे वोट्सप के मैसज की तरह



बचपन की यादों को बेकप लेकर फोल्डर में रख देता
जब मन करता तब खोलकर बचपना शुरू कर लेता

दोस्तों के साथ बिताई जिन्दगी के पलो को वहीं पोज (pause) कर देता
जब भी अकेला होता हूँ तब पुनः start कर लेता

क्यों हम इतने जल्दी बड़े हो जाते हैं
क्यों हम इन दोस्तों से पिछड़ जाते हैं

जब रूठ जाते थे दोस्त अपने
तब उन्हें मनाने के ढूँढते सो बहाने

पहले हर रोज बनते थे नये दोस्त
अब हर रोज पिछड़ते हैं दोस्त

क्यों जिन्दगी इस तरह करवटें बदलती है
क्यों उन्हें याद कर यह आँखें बरसती है

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

कविता आज मेरी कल जुबां पर तेरी होगी




"कविता आज मेरी, मगर कल जुबां पर तेरी होगी

मैं लिखूँ कुछ भी मगर, उसमें यादें तुम्हारी होगी,


वो लिखी मेरी कविता कभी तो पढ़ती होगी

वो पढ़ कर मेरी कविता कुछ तो सोचती होगी, 


वो छुप - छुप के मेरी प्रोफाईल कभी तो देखती होगी

मेरे अपलोड किये स्टेटस वो कभी तो बढ़ती होगी,


वो जब भी तनहां अकेली होती होगी कभी तो मुझे याद करती होगी

अकेली बैठी वो कभी तो साथ बिताये लम्हे याद करती होगी,


वो बातों बातों मे ही सही कभी तो मेरा नाम लेती होगी

राह चलता देख मुझे वो कभी तो बात करना चाहती होगी


कविता आज मेरी, मगर कल जुबां पर तेरी होगी

मैं लिखूँ कुछ भी मगर, उसमें यादें तुम्हारी होगी,"
✍ - कन्हैया लाल बड़गुजर