काश मेरी जिन्दगी होती किसी सॉफ्टवेयर की तरह
रिस्टोर कर लेता इसे वोट्सप के मैसज की तरह
बचपन की यादों को बेकप लेकर फोल्डर में रख देता
जब मन करता तब खोलकर बचपना शुरू कर लेता
दोस्तों के साथ बिताई जिन्दगी के पलो को वहीं पोज (pause) कर देता
जब भी अकेला होता हूँ तब पुनः start कर लेता
क्यों हम इतने जल्दी बड़े हो जाते हैं
क्यों हम इन दोस्तों से पिछड़ जाते हैं
जब रूठ जाते थे दोस्त अपने
तब उन्हें मनाने के ढूँढते सो बहाने
पहले हर रोज बनते थे नये दोस्त
अब हर रोज पिछड़ते हैं दोस्त
क्यों जिन्दगी इस तरह करवटें बदलती है
क्यों उन्हें याद कर यह आँखें बरसती है
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