मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

जाने कहाँ छुपी है तूँ



जाने कहाँ छुपी है तूँ
मैं तुम्हें ढूँढता हूँ हर गली
जाने तूँ मुझे अब तक क्यों ना मिली
तेरी हर एक याद साँसों में बसाये रखी है
तेरी सुरत को अब तक दिल में छुपाये रखी है
तुम्हें पाने की हर पल ललक रहती है
अब तो हर किसी में तूँ ही दिखती है
मेरी महोबत को तूँ ठुकरा ना देना
साथ बिताये लम्हे भुला ना देना
मेरी चाहत को यूँ नजर अन्दाज ना करना
एक बार आकर मुझे अपनी बाहो में भर लेना
मेरी महोबत को तूँ ठुकरा ना देना
साथ बिताये लम्हे भुला ना देना
जाने कहाँ छुपी है तूँ

क्यों झीक - झीक करता हूँ


क्यों झीक - झीक करता हूँ
जबकि कोई बात मेरी सुनता ही नहीं
क्यों मैं किसी को रोकता - टोकता हूँ
जबकि कोई बात मेरी मानता ही नहीं
बन्द कर अब यह झीक - झीक करना
बन्द कर अब किसी को रोकना - टोकना
हर कोई अपने आप में मस्त है
तूँ क्यों इनके लिए परस्त है
अब तुझे कोई अपना मानता नहीं
इसी लिए कोई तेरी मानता नहीं
बन्द कर अब इनके लिए रोना - धोना
इनके लिए अपनी जिन्दगी बना ली सुना कोना
अब तूँ अकेला ही बना अपनी जिन्दगी मजेदार हमेशा
छोड़ इन सब को ना कर किसी पर भरोसा

गुलाबों के इशारे


तूँ समझ ले मेरे गुलाबों के इशारे
मेरी जिन्दगी अब तेरे ही सहारे
भले ही तूँ दूर मुझ से चली गई हैं
तूँ आज भी मेरे उतनी ही करीब है
जितनी धड़कन दिल के करीब है

काश मेरी जिन्दगी होती किसी सॉफ्टवेयर की तरह





काश मेरी जिन्दगी होती किसी सॉफ्टवेयर की तरह
रिस्टोर कर लेता इसे वोट्सप के मैसज की तरह



बचपन की यादों को बेकप लेकर फोल्डर में रख देता
जब मन करता तब खोलकर बचपना शुरू कर लेता

दोस्तों के साथ बिताई जिन्दगी के पलो को वहीं पोज (pause) कर देता
जब भी अकेला होता हूँ तब पुनः start कर लेता

क्यों हम इतने जल्दी बड़े हो जाते हैं
क्यों हम इन दोस्तों से पिछड़ जाते हैं

जब रूठ जाते थे दोस्त अपने
तब उन्हें मनाने के ढूँढते सो बहाने

पहले हर रोज बनते थे नये दोस्त
अब हर रोज पिछड़ते हैं दोस्त

क्यों जिन्दगी इस तरह करवटें बदलती है
क्यों उन्हें याद कर यह आँखें बरसती है

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018


"जरूरी नहीं कि सब मेरी लिखावट, विचारों से सहमत हो
सहमत हैं वो मुझे अपने विचारों के प्रति दृढ़ता प्रदान करते है,
और असहमत प्रतिदिन कुछ नया करनी की शक्ति...!!"


"वो मिल ही जाती तुम्हें, अगर तुमने उसकी ओर देख ही लिया होता
वो तुम्हारे पास ही तो खड़ी थी,
और शायद इजहार कबूल कर भी लेती तुम्हारी मोहब्बत का,
अगर तुमने उस वक्त कुछ कह भी दिया होता..."



क्या लिखूँ ऐ मेरी कलम
पहले तु रूकती नहीं , क्यों अब चलती नहीं...

हाल ऐ दिल का क्या कहूँ
पहले कुछ कहता नहीं, कोई अब सुनता नहीं...

हाल ए इश्क का बताऊं किसे
वो रूठे ही नहीं तो मनाऊं किस...


"बात जुबां से निकली है तो दूर तक जाएगी
हो साथ तुम्हारा तो हर दिन होली, हर रात दिवाली मनाई जायेगी..."


"चाँदनी रात सुहानी

झील - मिल तारों में चाँद सुहाना

ठण्डी हवाओं के संग यादें सुहानी

जाने कहाँ से आई यह खुशबू तुम्हारी"...


शनिवार, 6 अक्टूबर 2018


दोस्तों जब भी कोई मिलता है तो अक्सर यही पूछता है ।
अभी कहाँ रहता है ?
कहाँ रहने लगा ?
क्या करता है ?
क्या कर रहा है ?
यह ऐसे प्रश्न हैं जिनका जवाब दे पाना बड़ा मुश्किल है। यह केवल मुझसे ही नहीं अपितु आपसे भी पूछे जाते हैं।
मैंने इन प्रश्नों का अपने तरीके से जवाब निकला है, शायद आपको पसंद आये।
मुझसे जब भी कोई पूछता है तो मैं एक ही जवाब देता हूँ -

"Past में रहकर लिखूँ कहानी,

Present में लिखूँ कविता ।

Future का सोचकर दिमाग ही सटकता ,

वस इसी लिए future का नही सोचता ।।"


गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

कविता आज मेरी कल जुबां पर तेरी होगी




"कविता आज मेरी, मगर कल जुबां पर तेरी होगी

मैं लिखूँ कुछ भी मगर, उसमें यादें तुम्हारी होगी,


वो लिखी मेरी कविता कभी तो पढ़ती होगी

वो पढ़ कर मेरी कविता कुछ तो सोचती होगी, 


वो छुप - छुप के मेरी प्रोफाईल कभी तो देखती होगी

मेरे अपलोड किये स्टेटस वो कभी तो बढ़ती होगी,


वो जब भी तनहां अकेली होती होगी कभी तो मुझे याद करती होगी

अकेली बैठी वो कभी तो साथ बिताये लम्हे याद करती होगी,


वो बातों बातों मे ही सही कभी तो मेरा नाम लेती होगी

राह चलता देख मुझे वो कभी तो बात करना चाहती होगी


कविता आज मेरी, मगर कल जुबां पर तेरी होगी

मैं लिखूँ कुछ भी मगर, उसमें यादें तुम्हारी होगी,"
✍ - कन्हैया लाल बड़गुजर



"मैं अपनी कल्पनाओं में खोया रहता हूँ ,
वस उन्ही में से कुछ लिख लेता हूँ "